रिश्ता – निभ जाए तो बात क्या है !
कहीं नहीं मिलते,
कहीं ख़रीदे नहीं जा सकते
कहीं से ढूंढे नहीं जाते
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कहीं से उग के नहीं आते
यह बनते है इंसानो से
कुछ बनते है माँ की खोख से
कुछ यू ही बन जाते हैं
ज़िन्दगी के सफर में
कुछ बनते है सिर्फ एक मुलाकात में
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कुछ बन जाते हैं,बार बार मिलने में
यह सिर्फ बनते ही नहीं
बिगड़ भी जाते हैं
बुनियाद इनकी दुरुस्त हो
तो कोई हिला नहीं सकता इनको
विश्वास और प्यार हो
तो कोई मिटा नहीं सकता इनको
बनाना आसान है इनको
आसान है बिगाड़ना इनको
रिश्ता एक ऐसा एहसास है
निभाना बहुत मुश्किल है जिसको